अभी-अभी
तो वे गये हैं
आने को कह कर,
अभी तो
बीते हैं
कुछ ही बरस,
कुछ भी
तो नहीं
हुआ है नीरस!
खुला ही
रहने दो
इस घर का यह दर.....!
अभी-अभी
तो वे गये हैं
आने को कह कर,
हर-
आहट पर,
चौंक उठती,
रह-रह कर
कहता
क्षण
धीरज धर,
भ्रम से
न मन भर ,
कहाँ
टूटी है
सावन की सब्र.....!
अभी-अभी
तो वे गये हैं
आने को कह कर,
अभी तो
ऑंखें ही
पथराई हैं,
कहाँ
अंतिम घड़ी
आयी है ,
अभी
प्रलय की
घटा कहाँ
छाई है,
देखूँगी
मैं अभी
उन्हें नयन भर....!
भावों की अच्छी अभिव्यक्ति,,,,,बढ़िया प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंवाह प्रतीक्षा की इन्तहा बहुत बेहतरीन रचना बहुत पसंद आई
जवाब देंहटाएंbahut sundar!!is par bhi nazar dalen
जवाब देंहटाएंhttp://kpk-vichar.blogspot.in
बहुत सुन्दर रचना ! बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ! बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !
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