चिड़िया के चूजे जब
चहचहाते थे उनदिनों पेड़ पर;
कोई गोरैया चुन लेती थी
अपने हिस्से के चावल!
और तिलोरियों की लड़ाईयां
देती थीं संकेत बारिश आने का!
पुराना बरगद जो
हुआ करता था
अनगिनत पक्षियों का बसेरा!
अब चिह्न भी नहीं रह गये
अवशेष जो इनके होने का
प्रमाण दे सकें!
हाँ इन पेड़ों की जगह लेली हैं
कुछ सरकारी इमारतों ने !
जहाँ कभी-कभी भीड़ इकट्ठी होती हैं
दाने-दाने की लड़ाईयों के लिए;
जिन पर सरकार ने पाबंदी लगा दी है
अब कोई दो दानों से अधिक नहीं खायेगा;
और जिसको खाना होता है
वो बन जाता है खुद सरकार!
एक कविता नहीं पूरा सफ़र है ..
जवाब देंहटाएंऔर जिनको खाना होता है वो बन जाता है सरकार .... सटीक ... अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआपस में हम लड़ रहे,करते है तकरार
जवाब देंहटाएंगरीबो का हक छीनकर,खा जाती सरकार,,,,
पोस्ट पर आने के लिये आभार,,,,,
आप समर्थक बने तो हार्दिक खुशी होगी,,,,,
RECENT P0ST फिर मिलने का
विकास की विनाशलीला का सहजता से प्रतिबिंबन कितना असहज होता है, वह रचनात्मक व्यक्ति ही जान सकता है। कविता भूत और वर्तमान की पगडंडी होती हुई भविष्य के सच तक ले जाती है।
जवाब देंहटाएंदाने दाने की लड़ाईयों के जिन पर सरकार ने पाबंदी लगा दी है
जवाब देंहटाएंबहूत सुंदर
जिनको खाना होता है वो बन जाता है सरकार .... सटीक ... अच्छी रचना दाने दाने पर पर लिखा है खाने बाले का नाम
जवाब देंहटाएंसुन्दर कटाक्ष...
जवाब देंहटाएंरचना बहुत अच्छी लगी | सुन्दर कटाक्ष
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कटाक्ष
जवाब देंहटाएं:-)