इस दौर में किसका करें ऐतबार;
जब अपने ही आजमाने लगे!
भरोसा तो गैरों का भी था बहुत;
अब बेगाने हक जताने लगे!
हर कोई तो है गम जदा यहाँ पर;
कौन किसे दास्ताँ सुनाने लगे!
लफ्जों को जो हम बयाँ करने चले;
अलफ़ाज़ अपने जख्म दिखाने लगे!
रूठ जाएगी एक दिन ये जिन्दगी,
हिसाब सांसों का लगाने लगे!
wow
जवाब देंहटाएंवाह ,,,, बहुत खूब, बेहतरीन प्रस्तुति,,,,,आस्थाना जी,,,
जवाब देंहटाएंgreat
जवाब देंहटाएंअब इस जिंदगी का हिसाब किताब लगाना छोड़ दीजिए
जवाब देंहटाएंwah, bahut khoob
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति...
:-)